दबे पाँव छुप-छुपकर जाते मैंने तुमको देखा है। खिड़की का परदा सरकाते मैंने तुमको देखा है।। चाहे जितना भी बोलो तुम मुझसे तुमको प्रेम नहीं, मेरी चर्चा पर मुसकाते मैंने तुमको देखा है।। कल तक दाँत-कटी-रोटी का जिससे घन संबंध रहा, आज उसी से आँख चुराते मैंने तुमको देखा है।। छोटी सी इक चूक हुई है, क्यों इतने उद्वेलित हो? गलती करते और छुपाते मैंने तुमको देखा है।। अपने बारे में कुछ सुनकर इतना क्षूब्ध न होवो तुम, निंदा-रस आनंद उठाते मैंने तुमको देखा है।। बात-बात पर नैतिकता की बात उठाना ठीक नहीं, उन गलियों में आते-जाते मैंने तुमको देखा है।। - राजेश मिश्र