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मैंने तुमको देखा है

दबे पाँव छुप-छुपकर जाते मैंने तुमको देखा है। खिड़की का परदा सरकाते मैंने तुमको देखा है।। चाहे जितना भी बोलो तुम मुझसे तुमको प्रेम नहीं, मेरी चर्चा पर मुसकाते मैंने तुमको देखा है।। कल तक दाँत-कटी-रोटी का जिससे घन संबंध रहा,  आज उसी से आँख चुराते मैंने तुमको देखा है।। छोटी सी इक चूक हुई है, क्यों इतने उद्वेलित हो? गलती करते और छुपाते मैंने तुमको देखा है।। अपने बारे में कुछ सुनकर इतना क्षूब्ध न होवो तुम, निंदा-रस आनंद उठाते मैंने तुमको देखा है।। बात-बात पर नैतिकता की बात उठाना ठीक नहीं,  उन गलियों में आते-जाते मैंने तुमको देखा है।। - राजेश मिश्र

प्रिय! तुमने अन्याय किया है।

प्रिय! तुमने अन्याय किया है। वाणी से जो-जो करना था, आँखों से अंजाम दिया है। प्रिय! तुमने अन्याय किया है।। भाव हृदय के जब भी शब्दों में ढल आए  क्रूर मौन से लड़कर बोल नहीं बन पाए  विवश वाक् की हर पीड़ा को मर्यादा का नाम दिया है।  प्रिय! तुमने अन्याय किया है।।१।। अधरो की कलियों ने जब-जब खुलना चाहा मधुमय हो श्रवणों में जब-जब घुलना चाहा प्रेम-पयस् पावन-प्रवाह को निर्दयता से थाम लिया है।  प्रिय! तुमने अन्याय किया है।।२।। चंचल निर्मल कोमल दृग किसको बतलाएँ सबके कर्तव्यों का थककर बोझ उठाएँ तुमने इन नाजुक अंगों को हद से बढ़कर काम दिया है। प्रिय! तुमने अन्याय किया है।।३।। - राजेश मिश्र