शिव सत्य सनातन की महिमा, पूरी किसने कह पाई है?।
ईश्वर-श्रीमुख-निस्सृत निर्मल
यह प्राणि-धर्म अति पावन है।
जड़-चेतन मंगलकारक है,
सुखकर, सब दुःख नसावन है।
श्रुति-पथ समदर्शी समग्राही,
शाश्वत संसृति सरसावन है।
सद्धर्म अनादि आदि अद्भुत
अति मनमोहक मनभावन है।
जो भी इसके शरणागत है, उसने जीवन-निधि पाई है।
शिव सत्य सनातन की महिमा पूरी किसने कह पाई है?।१।।
इसमें जड़ता का नाम नहीं,
यह चेतन है, नित नूतन है।
दृढ़ आत्मनियंत्रण, आत्मशुद्धि,
इसमें निज का प्रतिचिंतन है।
सब धर्मों-पंथों का जन्मद,
यह कालातीत चिरंतन है।
इसकी सब शाखायें-टहनी,
यह परम पुनीत पुरातन है।
हिमगिरि अभेद्य, यह अमित सिंधु, इसमें अथाह गहराई है।
शिव सत्य सनातन की महिमा पूरी किसने कह पाई है?।२।।
ईश्वर प्रदत्त उपहार अतुल,
यह प्राणिमात्र परिपोषक है।
पुरुषार्थ-चतुष्टय पथदर्शक,
जग सकल काम परितोषक है।
निज जन-जीवन नित हितकारक,
भव दारुण दुख अवशोषक है।
इस वैभवशाली संस्कृति का
परिचायक है, उद्घोषक है।
ईश्वर दुर्लभ प्रत्यक्ष भले, यह ईश्वर की परछाईं है।
शिव सत्य सनातन की महिमा, पूरी किसने कह पाई है?।३।।
श्रुति रुचिर ऋचाओं का गायन
देवों को मोहित करता है।
दैवी अनुकंपा से सिंचित
जग-जीवन सदा सँवरता है।
यह ज्ञान, कर्म अरु भक्ति सरस
जस विविध मार्ग बतलाता है।
ये दीर्घ-सूक्ष्म, मृदु-कठिन-सरल,
जन निज-निज रुचि अपनाता है।
दर्शन पुराण स्मृति गीता ने, पग-पग पर राह दिखाई है।
शिव सत्य सनातन की महिमा, पूरी किसने कह पाई है?।४।।
इस सुंदर सघन गहन वन को
दुष्टों ने नित रौंदा-काटा।
कुछ आए, लूटे, चले गए,
कुछ ने शरणागत हो छाँटा।
सामर्थ्य कहाँ किसमें इतनी
इसका अस्तित्व मिटा पाए?
जिसका कोई प्रारंभ नहीं,
फिर अंत भला कैसे आए?
अपनों ने औरों से बढ़कर, आभ्यंतर क्षति पहुँचाई है।
शिव सत्य सनातन की महिमा पूरी किसने कह पाई है?।५।।
- राजेश मिश्र
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