पुरखों के त्याग परिश्रम से उत्कर्ष हमारा जारी है।
बाह्याभ्यंतर रिपुओं से नित संघर्ष हमारा जारी है।।
सदियों से सतत चला आया
संघर्ष सदा संस्कृतियों का,
कुछ का अस्तित्व अभी बाकी,
कुछ पुंज शेष स्मृतियों का।
हाँ, शेष वही बस बच पायीं
जिनको निज पर विश्वास रहा,
दुनिया में वही फलीं-फूलीं
जिनको सत्ता का साथ रहा।
हम श्रेष्ठ रहे, हम श्रेष्ठ रहें, अनुतर्ष हमारा जारी है।
बाह्याभ्यंतर रिपुओं से नित संघर्ष हमारा जारी है।।१।।
चाहे जिस कारण से जग में
जब-जब सत्ता संघर्ष हुआ,
इक संस्कृति नवजीवन पायी,
इक संस्कृति का अपकर्ष हुआ।
युग-युग से यह चलता आया,
युग-युग तक चलता जाएगा,
जो सतत सतर्क सबल होगा,
केवल वह ही बच पायेगा।
हमने हर युग बलिदान दिया, उत्सर्ग हमारा जारी है।
बाह्याभ्यंतर रिपुओं से नित संघर्ष हमारा जारी है।।२।।
कुछ संस्कृतियाँ अनुदार अधम
असहिष्णु और अति हिंस्र रहीं,
कुछ अति उदार अरु अति सहिष्णु,
कुछ संस्कृतियाँ सम्मिश्र रहीं।
जो अति उदार अरु अति सहिष्णु
वे आगे चल इतिहास बनीं,
अनुदार हिंस्र संस्कृतियों का
अति सरल सहज सब ग्रास बनीं।
हम सह-अस्तित्व समर्थक नित दृढ़ मर्ष हमारा जारी है।
बाह्याभ्यंतर रिपुओं से नित संघर्ष हमारा जारी है।।३।।
हम रहे उदार सहिष्णु सदा,
हम सबको लेकर साथ चले।
इस सदय सनातन संस्कृति की
छाया में कितने पौध पले।
हमने निज शोणित से सींचा
शरणागत सब संस्कृतियों को
नित पाला-पोसा, प्रेम दिया,
बिसरा उनकी अपकृतियों को।
उन्मुख उस पथ पर हैं अब भी, आदर्श हमारा जारी है।
बाह्याभ्यंतर रिपुओं से नित संघर्ष हमारा जारी है।।४।।
भारत जब तक परतंत्र रहा
हम क्षरणोन्मुख निरुपाय रहे,
नित प्रति जूझे अस्तित्व हेतु
दिन-दिन अनगिन अन्याय सहे।
पुनि संरक्षक सत्ता पाकर
कुछ वर्षों से फल-फूल रहे,
हो अब प्रयास पर्यंत-प्रलय
सत्ता अपने अनुकूल रहे।
संकल्प सभी का हो सबसे अवमर्श हमारा जारी है।
बाह्याभ्यंतर रिपुओं से नित संघर्ष हमारा जारी है।।५।।
अनुतर्ष = कामना, इच्छा
मर्ष = सहनशीलता, धैर्य
अपकृति = आघात, दूसरा, उत्पीड़न, कुकर्म
क्षरणोन्मुख = क्षरण + उन्मुख
अवमर्श = सम्पर्क
- राजेश मिश्र
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