व्योम-प्रांगण में सितारे खिल गए।
प्रेम-पथ मनमीत मेरे मिल गए।।
प्यार से देखा, मिले कुछ इस तरह,
अधर पर मुसकान दे, ले दिल गए।।
व्यर्थ की बकवाद तो करता रहा,
पर समय पर होंठ उसके सिल गए।।
मेहनताना तय प्रदर्शन पर हुआ,
सब निकम्मे काम पर फिर पिल गए।।
योग्यता पर जाति यूँ हावी हुई,
देश तज परदेश सब काबिल गए।।
दूसरों का दर्द ही ढोता रहा,
क्या पता कब पाँव मेरे छिल गए।।
- राजेश मिश्र
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