इस जगत में कौन पाया पार तेरा?।
कर्म तू करता नहीं, सब बोलते हैं,
किंतु क्षण-क्षण चल रहा व्यापार तेरा।।
है नहीं आकार कोई, कौन कहता,
रूप कण-कण में सदा साकार तेरा।।
सत्त्व-रज-तम से परे नहिं राग तुझमें,
पर बरसता है सभी पर प्यार तेरा।।
तू अक्रिय है, मान लेते हैं कि सच है
क्या घटित, जिस पर नहीं अधिकार तेरा?।
है अजन्मा, जन्म तुझसे ही सभी का,
जीव-जड़ से प्रेम ही सत्कार तेरा।।
अहम् मेरा जब कभी चोटिल हुआ,
स्नेह जैसे बढ़़ गया हर बार तेरा।।
चित्त व्याकुल, करूँ साक्षात्कार कैसे?
स्मरण हो हिय में सतत दातार तेरा।।
लोग विह्वल, शुभ चतुर्दिक हो रहा है,
अवध में जबसे सजा दरबार तेरा।।
- राजेश मिश्र
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