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तड़प

तेरी यादों के गुलशन से कुछ फूल छाँटता हूँ।
ना पूछ बिन तेरे शब मैं कैसे काटता हूँ॥
मुद्दत गुजर गई नज़र तुमसे मिले हुए,
आये नज़र कहीं तू हर सिम्त ताकता हूँ॥
वैसे तो तेरे जाने का ग़म बहुत बड़ा है,
तू खुश रहे यही मैं सज़दे में माँगता हूँ॥
मिल जाये ग़र तू फिर से जाने ना दूँ मैं तुझको,
सारे जहाँ की खुशियाँ मैं तुझपे वारता हूँ॥
शायद मिल सकें ना इस जन्म में दोबारा,
फिर भी मैं तेरी ख़ातिर हर रात जागता हूँ॥

टिप्पणियाँ

  1. वन्दे मातरम बन्धु,
    बहुत ही सुंदर

    ""वैसे तो तेरे जाने का ग़म बहुत बड़ा है,
    तू खुश रहे यही मैं सज़दे में माँगता हूँ॥""
    आपके लेखन मैं गजब की रवानी है......... मैंने एक सार्वजनिक ब्लाग बनाया है ......... आप उस पर आकर लिखेंगे तो मुझे ख़ुशी होगी ........ हमारा मकसद अपने विचारों को अधिकाधिक लोगों तक पहुचाना है,
    http://bharatakta.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रिय मित्र, प्रेम अग्नि में तड़पते ह्रदय की पीड़ा से पीड़ित प्रेमी को प्रेम-पिपासा से तृप्ति मिले प्रभु से यह ही प्रार्थना करूँगा..पुनः बेहतरीन रचना में सहभागी बनाने का धन्यवाद..आपका सुभेक्षक

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