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कब तक खैर मनाओगे

भाईचारा में चारा बन, तुम कब तक खैर मनाओगे? निश्चित वह दिन आयेगा ही, जब काटे-बाले जाओगे।। भाई, भाई के हुए नहीं, भाई, बहनों के हुए नहीं। इतिहास उठाकर देखो तो, बेटे, माँ-बाप के हुए नहीं। तुम इनसे आशा करते हो, बदले में धोखा खाओगे। निश्चित वह दिन आयेगा ही, जब काटे-बाले जाओगे।।१।। पहले पालें, फिर काटें ये, ऐसी ही शिक्षा है इनकी। अपनाना, बोटी कर देना, सदियों से दीक्षा है इनकी। अति क्रूर कभी ममता न करें, भूलोगे तो पछताओगे। निश्चित वह दिन आयेगा ही, जब काटे-बाले जाओगे।।२।। आधा खेत गधे ने खाया, आधा फिर भी बचा हुआ है। तुम सोये हो चद्दर ताने, वह खाने में लगा हुआ है। नहीं उठे तो कुछ न बचेगा, घर से बेघर हो जाओगे। निश्चित वह दिन आयेगा ही, जब काटे-बाले जाओगे।।३।। - राजेश मिश्र 

हम राम-कृष्ण की सन्तानें

हम राम-कृष्ण की सन्तानें, मन्दिर में उन्हें सजायेंगे, गुण उनके नहिं अपनायेंगे। खोखली हमारी पूजा है, खोखली हमारी भक्ति है। खोखली हमारी बातें हैं, खोखली हमारी शक्ति है। जिनको आदर्श बनायेंगे, उनके पीछे नहिं जायेंगे, गुण उनके नहिं अपनायेंगे।।१।। कब राम धर्म से विमुख हुए? कब कृष्ण कर्म से मुँह मोड़े। कब वे अपनों के साथ न थे? कब एकाकी लड़ता छोड़े? आस्था का राग अलापेंगे, झूठी श्रद्धा दिखलायेंगे। गुण उनके नहिं अपनायेंगे।।२।। यदि सचमुच उनके वंशज हो! उन आदर्शों के पालक हो! अब उठो! उठो! उठ युद्ध करो, तुम ही अरि-दल संहारक हो। संग्राम करो, प्रतिमान बनो, युग-युग तक सब गुण गायेंगे। सब मस्तक तुम्हें नवायेंगे।।३।। - राजेश मिश्र 

चलो-चलो कुछ गीत लिखेंगे

उदारमना धर्मनिरपेक्ष कवियों को समर्पित एक गीत… चलो-चलो कुछ गीत लिखेंगे। छोड़ो धर्म-कर्म की बातें, छोड़ो देश-राष्ट्र की चिंता। इन विषयों पर सोच-सोच कर, दुख को छोड़ और क्या मिलता? किसी षोडशी के यौवन पर, न्यौछावर हो, प्रीत लिखेंगे। चलो-चलो कुछ गीत लिखेंगे।।१।। हम क्या धर्म-जाति के रक्षक? देश-राष्ट्र के प्रहरी हैं क्या? हमको क्यों पड़ना झगड़ों में? धर्मोन्मादी सनकी हैं क्या? हम सच्चे सद्भाव समर्थक, धर्म-मुक्त हो जीत लिखेंगे। चलो-चलो कुछ गीत लिखेंगे।।२।। कुछ लोगों के बहकावे में, भाईचारा क्यों छोड़ें हम? वे भी तो अपने ही हैं फिर, कैसे उनसे मुँह मोड़ें हम? आधी हिंदी, आधी उर्दू, गंगा-जमुनी रीत लिखेंगे। चलो-चलो कुछ गीत लिखेंगे।।३।। - राजेश मिश्र 

अब भी यदि चुप रह जाओगे

अब भी यदि चुप रह जाओगे, जीवन भर तुम पछताओगे।। जो इक बार चला जाता है, समय लौट कर कब आता है? निर्णय जब न लिए जाते हैं, परिणामों से पछताते हैं। अवसर स्वर्णिम खो जायेगा, दुविधा में यदि रह जाओगे। अब भी यदि चुप रह जाओगे, जीवन भर तुम पछताओगे।।१।। जिसका दम्भ सदा भरते हो, कहाँ गई वह शक्ति तुम्हारी? इष्ट निरादृत सतत हो रहे, कहाँ गई वह भक्ति तुम्हारी? बच्चे कल जब प्रश्न करेंगे, बोलो, मुँह क्या दिखलाओगे? अब भी यदि चुप रह जाओगे, जीवन भर तुम पछताओगे।।२।। आज प्राण बच भी जायें तो आगे क्या होगा? सोचा क्या? संस्कृति-धर्म विनष्ट हुए तो, गोत्र अवित होगा? सोचा क्या? तर्पण-श्राद्ध भूल ही जाना, तृषित-अतृप्त चले जाओगे। अब भी यदि चुप रह जाओगे, जीवन भर तुम पछताओगे।।३।। - राजेश मिश्र

रावण को जल जाने दो

आज दशहरा, विजय-पर्व है,  विजय-ध्वजा फहराने दो। रावण को जल जाने दो।। कोई कैकेई महलों में, ऐसा अब वरदान न माँगे। एक पुत्र के लिए सिंहासन, इक को वन-प्रस्थान न माँगे। पुत्र-वियोग में कोई दशरथ, मत धरती से जाने दो।। रावण को जल जाने दो।।१।। फिर से कोई भरत-शत्रुघन, राम-लक्ष्मण से नहिं बिछुड़ें। किसी अयोध्या नगरी की फिर, कहीं कभी भी माँग न उजड़े। किसी उर्मिला के आँचल में, सूनी साँझ न आने दो।। रावण को जल जाने दो।।२।। हरण जानकी का मत हो फिर, वृद्ध-गिद्ध के पंख कटे नहिं। अग्नि-परीक्षा देने वाली, सीता को गृह-त्याग मिले नहिं। मात-पिता दोनों के आश्रय, लव-कुश को पल जाने दो।। रावण को जल जाने दो।।३।। - राजेश मिश्र 

जगदम्बायै नमो नमः

जगदम्बायै नमो नमः। दुर्गादेव्यै नमो नमः।। जन-मन रञ्जनि, भव-भय-भञ्जनि, नित्य निरञ्जनि नमो नमः। माँ अविनाशी, उर-पुर-वासी, सदा-उदासी नमो नमः।। शैलपुत्र्यै नमो नमः। ब्रह्मचारिण्यै नमो नमः।। जगदम्बायै नमो नमः। दुर्गादेव्यै नमो नमः।।१।। असुर-मर्दिनी, दैत्य-ताड़िनी, देव-रक्षिणी नमो नमः। भक्त-अभयदा, ऋषि-मुनि सुखदा, रमा-शारदा नमो नमः। चन्द्रघण्टायै नमो नमः। कूष्माण्डायै नमो नमः।। जगदम्बायै नमो नमः। दुर्गादेव्यै नमो नमः।।२।। पाप-नाशिनी, ताप-नाशिनी, शान्ति-दायिनी नमो नमः। क्षमा-रूपिणी, कृपा-कारिणी, कान्ति-दायिनी नमो नमः। स्कन्दमातायै नमो नमः। कात्यायन्यै नमो नमः।। जगदम्बायै नमो नमः। दुर्गादेव्यै नमो नमः।।३।। शक्ति-दायिनी, मुक्ति-दायिनी, भक्ति-दायिनी नमो नमः। धैर्य-दायिनी, वीर्य-दायिनी, क्षुधा-रूपिणी नमो नमः। कालरात्र्यै नमो नमः। महागौर्यै नमो नमः।। जगदम्बायै नमो नमः। दुर्गादेव्यै नमो नमः।।४।। पाप हरो माँ, ताप हरो माँ, शीतल कर दो आज हमें। अन्तरतम की मैल हटा दो, निर्मल कर दो आज हमें। सिद्धिदात्र्यै नमो नमः। जगन्मात्रे नमो नमः।। जगदम्बायै नमो नमः। दुर्गादेव्यै नमो नमः।।५।। - राजेश मिश्र 

सबको इक दिन जाना होगा

सत्य यही है, जो आया है उसको इक दिन जाना होगा। फिर भी, जब तुम चले गये तो हृदय व्यथित है, मन उदास है।। सरल हृदय था, सहज मनुज थे, वैर किसी से नहीं बढ़ाया। जन की पीड़ा कम करना ही, निज जीवन का ध्येय बनाया। आजीवन वह लक्ष्य अडिग था, अति दृढ़ता से ठाना होगा।। फिर भी, जब तुम चले गये तो हृदय व्यथित है, मन उदास है।।१।। भारत माँ के योग्य पुत्र थे, तन-मन-धन से पूर्ण समर्पित। निश्चित है माँ तुम्हें देखकर, रहती होगी निशिदिन हर्षित। तुमको जन्म दिया तो माँ ने, धन्य कोख निज माना होगा।। फिर भी, जब तुम चले गये तो हृदय व्यथित है, मन उदास है।।२।। ईश्वर तुमको सद्गति देंगे, इसमें कुछ संदेह नहीं है। उनको भी निश्छल-मन-जन की, आवश्यकता सदा रही है। तुमको गले लगाकर उनकी, आँखों को भर आना होगा।। फिर भी, जब तुम चले गये तो हृदय व्यथित है, मन उदास है।।३।। (स्वर्गीय श्री रतन टाटा जी को विनम्र श्रद्धांजलि 💐💐🙏🙏 ) राजेश मिश्र 

ज्योति जगाओ मैया! ज्योति जगाओ

ज्योति जगाओ मैया! ज्योति जगाओ। मनसि प्रेम की ज्योति जगाओ।। भारत माता के उपवन में, भाँति-भाँति के कुसुम खिले हैं। सबके अपने रूप-रंग हैं, अरु विशेष गुण-गंध मिले हैं। सँग महकाओ मैया! सँग महकाओ। एक सूत्र में सँग महकाओ।।१।। कौन श्रेष्ठ है? निम्न कौन है? द्वेष-घृणा सब दूर करो माँ। सब सुत तेरे, भिन्न कौन है? मन में प्रेम अपूर्व भरो माँ। भेद मिटाओ मैया! भेद मिटाओ। ऊँच-नीच का भेद मिटाओ।।२।। कोई निर्बल, दुखी नहीं हो, सभी सुखी हों, सभी बली हों। सब संपन्न, धर्म-पथ-गामी, गुणनिधान हों, नहीं छली हों। दीप जलाओ मैया! दीप जलाओ। हृदय ज्ञान का दीप जलाओ।।३।। - राजेश मिश्र 

माँ का ध्यान करो

सिंह सवारी, छवि अति न्यारी, करुणा का भण्डार… माँ का ध्यान धरो।। सुनत पुकार दौड़ि चलि आवे, पल भर भी नहिं बार लगावे, भक्त-जनों की पीर हरे माँ दुखियों के दुख दूर करे माँ, आर्त जनों पर, दया निरन्तर, बरसे अपरम्पार… माँ का ध्यान धरो।।१।। सरल स्वभाव, सहज हरषाती, शरणागत को गले लगाती, जो छल-छद्म छोड़कर आवै, मुँह माँगा वर माँ से पावे, जो नित ध्यावे, माँ अपनावे, सींचे स्नेह अपार… माँ का ध्यान धरो।।२।। पाप-ताप जब बढ़े मही पर, विकल, व्यथित हों सब सुर-मुनि-नर, दुखी धरा का भार हरे माँ, निज जन को भय-मुक्त करे माँ, हने निशाचर, दुर्मद दुर्धर, मेटे अत्याचार… माँ का ध्यान धरो।।३।। - राजेश मिश्र 

माई सपने में आई

धन्य हुआ मैं आज, माई सपने में आई।। पहले सिर पर हाथ फिराया, फिर हौलै से मुझे जगाया, प्यार से बोली, उठ जा बेटा! अर्धनिमीलित आँखों देखा, ठाढ़ी थी साक्षात, माई सपने में आई। धन्य हुआ मैं आज, माई सपने में आई।।१।। तेज देख आँखें चुँधियाईं, टूटा बंध और भर आईं, तुरतहिं माँ ने हृदय लगाया, पुचकारा, पुनि-पुनि दुलराया, हरष न हृदय समात, माई सपने में आई। धन्य हुआ मैं आज, माई सपने में आई।।२।। मुझे प्रेम से अंक बिठाया, गोदी पा मैं अति अगराया, देखी जब मेरी लरिकाई, माता मन ही मन मुसुकाई, चूम लिया फिर माथ, माई सपने में आई। धन्य हुआ मैं आज, माई सपने में आई।।३।। उपालंभ तब मेरा सुनकर, हृदय बसी सब पीड़ा गुनकर, पुनि-पुनि मुझको उर में धारा, आँसू पोंछे, रूप सँवारा, खुल गइ मन की गाँठ, माई सपने में आई। धन्य हुआ मैं आज, माई सपने में आई।।४।। माँ ने करुण-कृपा बरसाई, अंतर्मन की ज्योति जगाई, ज्ञानचक्षु के पट पुनि खोले, मुझे सुलाया हौले-हौले, कर गइ मुझे सनाथ, माई सपने में आई। धन्य हुआ मैं आज, माई सपने में आई।।५।। - राजेश मिश्र

अंबे! यह वरदान दो।

हृदय-कमल में निशिदिन रहती,  रोम-रोम को पुलकित करती, मुझको एक निदान दो। अंबे! यह वरदान दो।। नैनों में यह शक्ति जगा दो,  देखूँ सकल बुराई। लेकिन बाहर कुछ नहिं, दीखे अंतर्मन की काई। खुरच-खुरचकर फेंकूँ मन से, आराधन, तेरे चिंतन से, ऐसा तुम अवदान दो। अंबे! यह वरदान दो।।१।। वाणी में माँ शक्ति जगा दो,  तेरा ही गुण गाऊँ। निकले नाम तुम्हारा केवल,  कहने कुछ भी जाऊँ। अजपा-जाप का तार न टूटे, पल भर को भी ध्यान न छूटे, मन को ऐसा तान दो। अंबे! यह वरदान दो।।२।। श्रवण सुनें तेरी ही महिमा,  दूजा रस नहिं भाये। छन-छन कर अंतस् में पहुँचे,  अरु आनंद बढ़ाये। निंदा-स्तुति से दूर रहूँ माँ, सुख-दुख हो समभाव सहूँ माँ, आत्मतत्त्व का ज्ञान दो। अंबे! यह वरदान दो।।३।। - राजेश मिश्र

आओ मैया! घर में आओ

हम सब तेरे ही जन अंबे! हम ही तुम्हें पुकारें।आओ मइया! घर में आओ, क्यों ठाढ़ी हो द्वारे? आसन शोभन लगा हुआ है, आओ, मातु पधारो। पावन शीतल जल लाये हैं, पाद्य-अर्घ्य स्वीकारो। स्नान हेतु क्षीरोदक-दधि-घी, पंचामृत-मधु सारे।आओ मइया! घर में आओ, क्यों ठाढ़ी हो द्वारे? नाना परिमल द्रव्य है मइया, कुंकुम है, सिंदूर है। उत्तम उद्वर्तन चंदन का, इष्टगंध भरपूर है। पुष्पाक्षत से पूजें मइया, सरसिज-चरण तुम्हारे।आओ मइया! घर में आओ, क्यों ठाढ़ी हो द्वारे? लकदक लाल चुनरिया लाये, कनक देह पर धारो, आभूषण, शृंगार-वस्तु सब, इनको अंगीकारो। बीड़ा-फल-नैवेद्य-आरती, हम स्वागत में ठाढ़े।आओ मइया! घर में आओ, क्यों ठाढ़ी हो द्वारे? - राजेश मिश्र

हे अंबे! जयकार तुम्हारा

हे अंबे! जयकार तुम्हारा। कर दो बेड़ा पार हमारा।। तुम ही आदिशक्ति जगदंबे! तुमसे पह संसार है सारा। कर दो बेड़ा… सूरज, शशधर, दीपक, तारे  तुमसे ही सबमें उजियारा। कर दो बेड़ा… सचराचर के कण-कण में तुम, तुम्हीं भँवर हो, तुम्हीं किनारा। कर दो बेड़ा… हम अबोध, अज्ञानी बालक दूजा कोई नहीं सहारा। कर दो बेड़ा… पूजा, जप-तप, योग न जानें, कैसे हो उद्धार हमारा? कर दो बेड़ा… मन में मैल जमी जनमों से धुल दो बहा स्नेह-जल-धारा। कर दो बेड़ा… कर दो जीवन ज्योतिर्मय माँ, अंतस् घटाटोप अँथियारा। कर दो बेड़ा… - राजेश मिश्र 

यह मन बिलकुल धीर नहीं है

यह मन बिलकुल धीर नहीं है। कोई समझे पीर नहीं है।। माँ-बहनों! आँचल सम्भालो, द्रुपदसुता का चीर नहीं है। आँखों में आँखें दे बोलें, ऐसे अगणित वीर नहीं हैं। थाली में पकवान बहुत हैं, लेकिन घी, दधि, क्षीर नहीं हैं। आए थे हम-तुम एकाकी, अंत समय भी भीड़ नहीं है। यह दुनिया मतलब का मेला, बिन मतलब दृग नीर नही है। - राजेश मिश्र

जैसे-जैसे वय बढ़ती है

जैसे-जैसे वय बढ़ती है। अभिलाषाएँ सिर चढ़ती हैं।। जिन गलियों को छोड़ चुके थे, वे फिर से अपनी लगती हैं।। पूरी नहीं हुईं इच्छाएँ, बच्चों के आश्रय पलती हैं।। भूख बड़प्पन की सुरसा-मुख, अपनी बुद्धि बड़ी लगती है।। छोटे-बड़े सभी दुत्कारें, फिर भी टाँग अड़ी रहती है।। वानप्रस्थ, संन्यास भुला दो, नस-नस मोह-नदी बहती है।। राम-नाम मुख कैसे आवै? निंदा-स्तुति चलती रहती है।। - राजेश मिश्र 

हम तेरे शरणागत अंबे!

भव-बंधन काटो जगदंबे! कबसे तुझे पुकारें! हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।। योनि-योनि हम भटक रहे हैं, जन्मों से संसार में। मुक्ति-युक्ति कोई नहिं सूझे, अटके हैं मझधार में। तुझको छोड़ पुकारें किसको? हमको कौन उबारे? हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।१।। पुत्र कुपुत्र कुरूप भले हो, माता सदा दुलारे। आँचल की छाया में पाले, हर दुख निज सिर धारे। तुझ बिन कौन हरे दुख मैया! किसके रहें सहारे? हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।२।। देवों पर जब जब विपदा आयी, तुमने उन्हें सँभारा। चंड-मुंड, महिषासुर मर्दिनि, रक्तबीज संहारा। अंतस् में हैं दैत्य घनेरे, तुझ बिन कौन सँहारे? हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।३।। सृजन-शक्ति है ब्रह्मा की तू, हरि तेरे बल पालें। शिव की शक्ति सँहारक तू ही, अर्धांगी बन धारें। जग की सारी क्रिया तुझी से, तेरे ही बल सारे। हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।४।। अब तो शरण में ले ले मैया! अब दुख सहा न जाये। कैसे कटे विपत्ति हमारी? कुछ भी समझ न आये। चाहे तू अपनाये मैया! या हमको दुत्कारे! हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।५।। - राजेश मिश्र