सिंह सवारी,
छवि अति न्यारी,
करुणा का भण्डार…
माँ का ध्यान धरो।।
सुनत पुकार दौड़ि चलि आवे,
पल भर भी नहिं बार लगावे,
भक्त-जनों की पीर हरे माँ
दुखियों के दुख दूर करे माँ,
आर्त जनों पर,
दया निरन्तर,
बरसे अपरम्पार…
माँ का ध्यान धरो।।१।।
सरल स्वभाव, सहज हरषाती,
शरणागत को गले लगाती,
जो छल-छद्म छोड़कर आवै,
मुँह माँगा वर माँ से पावे,
जो नित ध्यावे,
माँ अपनावे,
सींचे स्नेह अपार…
माँ का ध्यान धरो।।२।।
पाप-ताप जब बढ़े मही पर,
विकल, व्यथित हों सब सुर-मुनि-नर,
दुखी धरा का भार हरे माँ,
निज जन को भय-मुक्त करे माँ,
हने निशाचर,
दुर्मद दुर्धर,
मेटे अत्याचार…
माँ का ध्यान धरो।।३।।
- राजेश मिश्र
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