भव-बंधन काटो जगदंबे! कबसे तुझे पुकारें!
हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।
योनि-योनि हम भटक रहे हैं,
जन्मों से संसार में।
मुक्ति-युक्ति कोई नहिं सूझे,
अटके हैं मझधार में।
तुझको छोड़ पुकारें किसको? हमको कौन उबारे?
हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।१।।
पुत्र कुपुत्र कुरूप भले हो,
माता सदा दुलारे।
आँचल की छाया में पाले,
हर दुख निज सिर धारे।
तुझ बिन कौन हरे दुख मैया! किसके रहें सहारे?
हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।२।।
देवों पर जब जब विपदा आयी,
तुमने उन्हें सँभारा।
चंड-मुंड, महिषासुर मर्दिनि,
रक्तबीज संहारा।
अंतस् में हैं दैत्य घनेरे, तुझ बिन कौन सँहारे?
हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।३।।
सृजन-शक्ति है ब्रह्मा की तू,
हरि तेरे बल पालें।
शिव की शक्ति सँहारक तू ही,
अर्धांगी बन धारें।
जग की सारी क्रिया तुझी से, तेरे ही बल सारे।
हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।४।।
अब तो शरण में ले ले मैया!
अब दुख सहा न जाये।
कैसे कटे विपत्ति हमारी?
कुछ भी समझ न आये।
चाहे तू अपनाये मैया! या हमको दुत्कारे!
हम तेरे शरणागत अंबे! बैठे तेरे द्वारे।।५।।
- राजेश मिश्र
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