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यह मन बिलकुल धीर नहीं है

यह मन बिलकुल धीर नहीं है।
कोई समझे पीर नहीं है।।

माँ-बहनों! आँचल सम्भालो,
द्रुपदसुता का चीर नहीं है।

आँखों में आँखें दे बोलें,
ऐसे अगणित वीर नहीं हैं।

थाली में पकवान बहुत हैं,
लेकिन घी, दधि, क्षीर नहीं हैं।

आए थे हम-तुम एकाकी,
अंत समय भी भीड़ नहीं है।

यह दुनिया मतलब का मेला,
बिन मतलब दृग नीर नही है।

- राजेश मिश्र

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