पाँच बरस की सहमी बेटी, छाती से चिपकाए।
सात दिनों से घर में दुबकी, नेहा नीर बहाए।
दैव! कैसा दुर्दिन दिखलाए?
हमने भी तो खून बहाए
इस मिट्टी की खातिर।
देश हमारा, इसी देश में
आज बने हैं काफ़िर।
जिस मिट्टी में हमने अपने, सौ-सौ पुश्त खपाए,
भला क्यों कर काफ़िर कहलाए?……(१)
सीधे-सादे पति को मारा
गाड़ी साध जलाई।
अस्मत उनने लूटी मेरी,
जो बनते थे भाई।
इस नन्ही सी जान को उनसे, कैसे आज बचाएं?
भागकर किस चौखट पर जाएं?……(२)
हा दुर्दैव! तोड़ दरवाजा
भीड़ घुस गई अन्दर।
माँ को मारा, बेटी छीनी
हृदयविदारक मंज़र।
चीखें बच्ची की टूटीं तब, दानव बाहर आए,
हँस रहे बड़ी विजय हों पाए।……(३)
पाक, अफगान, बांग्ला में अब
नंगा नाच चल रहा।
कोटि-कोटि हिंदू भारत में,
सेक्युलर बना पल रहा।
है भवितव्य यही इनका भी, कौन इन्हें समझाए?
लुटें बेटी-बहनें-माताएं।……(४)
- राजेश मिश्र
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