खो बचपन, लड़ने जीवन की
होड़ चला है पंछी…
घर छोड़ चला है पंछी।
माँ का आँचल, पितु का साया
अब छूटे जाते हैं।
करुण स्नेह के निर्झर नयनों
से फूटे जाते हैं।
प्रेम-निर्झरी की धारा को
मोड़ चला है पंछी…
घर छोड़ चला है पंछी।।१।।
शक्ति-युक्त पंखों को पाकर
चला विशाल गगन में।
विश्व-विजय करने की इच्छा
पाले अपने मन में।
नये जगत से अपना नाता
जोड़ चला है पंछी…
घर छोड़ चला है पंछी।।२।।
बिना सहारे, निज पंखों की
ताकत अब तौलेगा।
मात-पिता-गुरुजन शिक्षा से
नये द्वार खोलेगा।
निर्भय हो, मन के भय-भ्रम को
तोड़ चला है पंछी…
घर छोड़ चला है पंछी।।३।।
- राजेश मिश्र
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