मुरझाया-सा मन मुसकाया सूने-बूढ़े गाँव में।
तुम आए नवजीवन आया सूने-बूढ़े गाँव में।।
अनमनि गइयाँ लगीं रँभाने,
चिड़ियाँ चह-चह चहक उठीं।
क्षीण-ज्योति बाबा-आजी की
आँखें फिर से चमक उठीं।
तुम्हें देख आँगन हरषाया सूने-बूढ़े गाँव में।
तुम आए नवजीवन आया सूने-बूढ़े गाँव में।।१।।
गूँगी-सी माँ की बोली अब
कोयल सा रस भरती है।
कई बरस के बाद कड़ाही
छन-छन पूड़ी तलती है।
पकवानों ने घर महकाया सूने-बूढ़े गाँव में।
तुम आए नवजीवन आया सूने-बूढ़े गाँव में।।२।।
खेतों में हरियाली आई
ताल-पोखरे उमग पड़े।
परिजन, पशु, पक्षी, पौधे सब
विह्वल तन-मन सजल खड़े।
पीपल-पात पुन: लहराया सूने-बूढ़े गाँव में।
तुम आए नवजीवन आया सूने-बूढ़े गाँव में।।३।।
- राजेश मिश्र
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें