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रे बटोही! धीर धर

हाँ, कठिन है जीवन-डगर,
रे बटोही! धीर धर।।

मार्ग काँटों से भरे हैं,
पत्थरों की ठोकरें हैं।
है नहीं ठहराव कोई,
पथ स्वयं ही चल रहे हैं।

हो धूप कितनी भी प्रखर,
रे बटोही! धीर धर।।१।।

नियत पथ, गंतव्य निश्चित,
और यात्रा अवधि निश्चित।
ठोकरें कब-कब लगेंगी,
घाव-पीड़ा सब सुनिश्चित।

व्यर्थ का प्रतिकार मत कर,
रे बटोही! धीर धर।।२।।

द्वंद्व सह तू, कर्म कर तू,
अडिग रह निज धर्म पर तू।
तप यही है, साधना है,
धर्म का हिय मर्म धर तू।

मन मनन कर, चिंता न कर,
रे बटोही! धीर धर।।३।।

- राजेश मिश्र 

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