कैसे मिल-जुल साथ चलें सब? प्रश्न विकट, उलझन अपार है…
सबके अपने अहंकार हैं।।
घर में भाई-भाई लड़ते,
बाहर लड़ें पड़ोसी।
किसको दोषमुक्त मानें हम,
किसको मानें दोषी?
ताली बजती दो हाथों से, दोनों पक्ष कसूरवार हैं…
सबके अपने अहंकार हैं।।१।।
धर्म-कर्म का पता नहीं है,
आडम्बर में डूबे।
जाति-जाति का भोंपू लेकर
सारे उछलें-कूदें।
दम्भी-लोभी-कामी-क्रोधी, सदा स्वार्थ से सरोकार है…
सबके अपने अहंकार हैं।।२।।
सच्चाई का गला घोंटकर,
झूठ की गठरी बाँधे।
तीर द्वेष का लेकर घूमें,
सरल जनों पर साधें।
मेल नहीं कथनी-करनी में, तर्क निरालै निराधार हैं…
सबके अपने अहंकार हैं।।३।।
- राजेश मिश्र
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