ढूँढ़ूँ मैं प्रिय राम कहाँ हो?
मेरे सुख के धाम कहाँ हो?
तुम बिन नैन चैन नहिं पायें,
सूखें इक पल, पुनि भर आयें।
इत-उत देखें, राह निहारें,
पथरायें, पुनि-पुनि जी जायें।
लोचन ललित ललाम कहाँ हो?
मेरे सुख के धाम कहाँ हो?………(१)
अंग शिथिल हैं, तन कुम्हलाया,
हुआ अचंचल, मन मुरझाया।
हाहाकार हृदय करता है,
बुद्धि-विवेक ने ज्ञान गँवाया।
तन-मन के आराम कहाँ हो?
मेरे सुख के धाम कहाँ हो?………(२)
तुम बिन शशधर-भानु रुके हैं,
दिवस आदि-अवसान रुके हैं।
श्याम वदन दर्शन-वन्दन हित,
सतत टूटते प्राण रुके हैं।
ढूँढ़ रहे अविराम कहाँ हो?
मेरे सुख के धाम कहाँ हो?………(३)
- राजेश मिश्र
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