जब कोई पत्थर बरसाए,
खून तुम्हारा खौले है क्या?
निरपराध कोई मर जाए,
खून तुम्हारा खौले है क्या?
शत्रु-बोध से हीन रहोगे,
सदा दुखी अरु दीन रहोगे।
आगे चल वंशज कोसेंगे,
आजीवन श्रीहीन रहोगे।
बहू-बेटियाँ छेड़ी जाएँ,
खून तुम्हारा खौले है क्या?
निरपराध कोई मर जाए,
खून तुम्हारा खौले है क्या?………………(१)
ऐसा नहीं कि शक्ति नहीं है,
या फिर तुममें भक्ति नहीं है।
धर्मपरायण, संस्कृति-पोषक,
पर विरोध-अभिव्यक्ति नहीं है।
मूरति-मन्दिर तोड़े जाएँ,
खून तुम्हारा खौले है क्या?
निरपराध कोई मर जाए,
खून तुम्हारा खौले है क्या?………………(२)
अथक परिश्रम आजीवन कर,
तिनका-तिनका जोड़ बना घर।
तात-मात का तोष-प्रदाता,
बच्चों का शुचि सपना सुंदर।
कोई घर-सम्पत्ति जलाए,
खून तुम्हारा खौले है क्या?
निरपराध कोई मर जाए,
खून तुम्हारा खौले है क्या?………………(३)
- राजेश मिश्र
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