सूरज के ढलने पर जब घनघोर अंधेरा पलता है।
अरुणोदय की आशा ले दीपक रातों को जलता है।।
मन में यह विश्वास प्रबल है अन्धकार मिट जायेगा।
स्याह भयावह रात ढलेगी सूरज फिर उग आयेगा।
जब तक साँसें चलती रहतीं थके-रुके बिन चलता है।
अरुणोदय की आशा ले………।।१।।
कोई प्रतिफल नहीं चाहता अनासक्त निज कर्म करे।
जन्म जगत में लिया हेतु जिस पालन अपना धर्म करे।
निष्कामी का कर्म हमेशा औरों के हित फलता है।
अरुणोदय की आशा ले………।।२।।
सूरज को उपदेश न देता निज कर्तव्य निभाता है।
नई साँझ, नित नया जन्म तम से लड़ने आता है।
सत्य-धर्म हित बलि होने को हर इक बार मचलता है।
अरुणोदय की आशा ले………।।३।।
- राजेश मिश्र
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