छोड़ो जाति-पाँति की बातें, हिंदू-हिंदू भाई-भाई।
तज दो मन की कड़वी यादें, हिंदू-हिंदू भाई-भाई।।
हम सब मनु की संतानें हैं,
वर्ण कर्मवश चार हुए।
जाति कुशलता की परिचायक,
भिन्न-भिन्न व्यापार हुए।
गाधितनय ब्रह्मर्षि कहाते, हिंदू-हिंदू भाई-भाई।
तज दो मन की कड़वी यादें, हिंदू-हिंदू भाई-भाई।।१।।
इक शरीर हैं, अंग अलग हैं ,
एक हृदय की धड़कन है।
पोषित होते उसी उदर से,
सबमें रमे वही मन है।
रक्त एक है, भेद कहाँ से? हिंदू-हिंदू भाई-भाई।
तज दो मन की कड़वी यादें, हिंदू-हिंदू भाई-भाई।।२।।
राम-कृष्ण ने जाति देखकर
किसको निम्न-उच्च माना?
जो भी आया, हृदय लगाया,
अपने जैसा ही जाना।
हम क्यों अलग नीति अपनायें? हिंदू-हिंदू भाई-भाई।
तज दो मन की कड़वी यादें, हिंदू-हिंदू भाई-भाई।।३।।
- राजेश मिश्र
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।
- भगवद्गीता अ. ४, श्लो. १३
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