नित खींच-तान में फँसे लोग।
स्वार्थ-जम्बाल में धँसे लोग।।
गाँवों की पीड़ा क्या समझें,
आजन्म शहर में बसे लोग।।
मिलने पर महका जाते हैं,
मलय-सा शिला पर घिसे लोग।।
सबको सद्य भाँप लेते हैं,
जीवन-चक्की में पिसे लोग।।
दुख दूसरों का समझ लेते हैं,
कृतान्त-पाश में कसे लोग।।
चित्त से उतर ही जाते हैं
रंग उतरते, मन-बसे लोग।।
रक्त से सदा सींचा जिसने,
उसी को सर्प बन डँसें लोग।।
मदमस्त झूमते पी-पीकर
जातिगत अहं के नशे लोग।।
जम्बाल = कीचड़
कृतान्त = भाग्य
- राजेश मिश्र
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें