भींगी-भींगी आँखों ने, तुमको जाते देखा था।
शायद तुमको याद नहीं।
छोड़ो, कोई बात नहीं।।
जब तुम डोली में बैठी,
बुनती सपने साजन के।
था दृग-द्वय से बीन रहा,
टूटे टुकड़े मैं मन के।
मन के टूटे टुकड़ों ने, तुमको जाते देखा था।
शायद तुमको याद नही।
छोड़ो, कोई बात नहीं।।१।।
याद किए सारे सपने
देखे थे मिलकर हमने।
कंधे पर सिर रख मेरे
की थीं जो बातें तुमने।
उन सपनों की किरचों ने, तुमको जाते देखा था।
शायद तुमको याद नहीं।
छोड़ो, कोई बात नहीं।।२।।
फूल खिलाए थे तुमने
हृदय लगा जो भावों के
छलनी कर डाला सीना
काँटा बनकर घावों से।
भावों के उन घावों ने, तुमको जाते देखा था।
शायद तुमको याद नहीं।
छोड़ो, कोई बात नहीं।।३।।
- राजेश मिश्र
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