धन्य! धन्य! देवभूमि, धन्य! तेरे वीर पुत्र,
शत्रु के समक्ष वक्ष, तानकर खड़े हैं।
चेतन हुआ समाज, खौल रहा रक्त आज,
अंत आतंक का अब, करना है अड़े हैं।।
दुश्मन ने देखा दम, पीछे खींचा है कदम,
हुआ दर्प चूर-चूर, ढीले कस पड़े हैं।
जड़ नहीं चेतन में, है शक्ति संगठन में,
खड़ी जीत आंगन में, मिलकर लड़े हैं।।
- राजेश मिश्र
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