पत्थर की ठोकर भी होगी, और बिछेंगे फूल भी…
फिर भी आगे बढ़ना होगा।
लक्ष्य-वेध हित चलना होगा।।
पथरीले पथ पर बढ़कर ही,
घासों के मैदान मिलेंगे।
बलखाती नदियों के उद्गम,
झरनों के अवसान मिलेंगे।
नरम दूब की सेज सजेगी, और चुभेंगे शूल भी…
फिर भी आगे बढ़ना होगा।
लक्ष्य-वेध हित चलना होगा।।१।।
स्निग्ध स्पर्श समीर का होगा,
अरु लू के तपते ताने भी।
सुमन-सुरभि के भाव मिलेंगे,
चारण भ्रमरों के गाने भी।
मीठे जल का स्नेह मिलेगा, अपमानों की धूल भी…
फिर भी आगे बढ़ना होगा।
लक्ष्य-वेध हित चलना होगा।।२।।
चलते-चलते गिर जायें यदि,
द्विगुणित बल से उठना होगा।
नव ऊर्जा संचार हेतु तन,
तरु-छाया में रुकना होगा।
कुछ अप्रतिम निर्णय भी होंगे, अरु होगी कुछ भूल भी…
फिर भी आगे बढ़ना होगा।
लक्ष्य-वेध हित चलना होगा।।३।।
- राजेश मिश्र
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