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अवध में, आये हैं रघुराई

तन-मन हरषें, अँखियाँ बरसें,
चलहुँ दरस को भाई।
अवध में, आये हैं रघुराई।।

चहक रहे हैं पसु-पक्षी सब, कोयल मंगल गावैं।
दादुर टर-टर मंत्र उचारें, मेह नेह बरसावैं।

पवन सनन-सन चहुँ दिसि नाचत,
अति अनंद उमगाई।
अवध में, आये हैं रघुराई।।१।।

कली-कली खिल फूल हुई हैं, रंग-सुगंध बिखेरें।
धरती हरी-भरी हो मचले, मन आमोद घनेरे।

मधुकारिन् मधुपर्क बनावैं,
हरि कहुँ भोग लगाई।
अवध में, आये हैं रघुराई।।२।।

डगर-डगर मन मगन झूमतीं, ताल-नदी हरषाने।
कूप-पोखरी उमग रहे हैं, बिटप-लता हुलसाने।

धाये पुरजन, भरत-शत्रुघन,
बिह्वल तीनों माई।
अवध में, आये हैं रघुराई।।३।।

- राजेश मिश्र

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