कहो कान्हा! करोगे कैसे तुम उद्धार?
तुमको तो दधि-माखन प्यारा,
ढूँढो हर घर-द्वार।
मेरे घर नहिं गाय न बछिया,
नहिं कुछ अन्य अधार।
कहो कान्हा! करूँ कैसे स्वागत-सत्कार?
कहो कान्हा! करोगे कैसे तुम उद्धार?
तुम तो भक्ति-भाव के भूखे,
पियो भक्ति-रस-धार।
ज्यों ही भक्त पुकारे तुमको,
पहुँचत लगे न बार।
सुनो कान्हा! नहीं मुझमें वह अमृत धार।
कहो कान्हा! करोगे कैसे तुम उद्धार?
कलि कलुषित कुत्सित कपटी मन,
किये हैं पाप अपार।
काम-क्रोध-मद-मोह-लोभ सब,
भरे पड़े हैं विकार।
कहो कान्हा! तुमसे सँभलेगा यह भार?
कहो कान्हा! करोगे कैसे तुम उद्धार?
- राजेश मिश्र
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