तड़पति महतारी बेकलि, काम ना ओराइल बा।
कइसे के जाईं घरवाँ, बचवा भुखाइल बा।।
दुइयऽ महिनवाँ के बा,
बाबू जनमतुआ।
पेटवा के आगि अइसन,
छोड़ीं कइसे खेतवा।
खेते-खरिहाने में ही, जिनगी ओराइल बा।
कइसे के जाईं घरवाँ, बचवा भुखाइल बा।।
पियले भिनहियँ के बा,
पेट कुकुहाइल होई।
टोला-महल्ला सुनि के,
रोवल घबराइल होई।
भोरवँ क आइल दिनवाँ, माथे नियराइल बा।
कइसे के जाईं घरवाँ, बचवा भुखाइल बा।।
ससुर'-सासु, जेठ-देवर,
रहलें अलगाई।
घरे में सयान नाहीं,
खेते लेके आई।
झिनकी भी लइके हवे, लेके अफनाइलि बा।
कइसे के जाईं घरवाँ, बचवा भुखाइल बा।।
- राजेश मिश्र
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