कब तक हम सहते जाएंगे?
एकांगी शांति निभाएंगे?
यह चुप रहने का दौर नहीं,
अब बहुत हुआ, अब और नहीं।।
वे घर में घुसते आते हैं,
हम चुप रह, सब सह जाते हैं।
सब सहकर भी, चुप रहकर भी,
हम ही दोषी कहलाते हैं।
वे मारें, हम मरते जाएं,
हम मरने से डरते जाएं,
किससे हमने यह सीखा है?
क्या यह पुरखों की शिक्षा है?
राणा प्रताप की संतानें,
भोजन का कोई कौर नहीं।।
यह चुप रहने का दौर नहीं,
अब बहुत हुआ, अब और नहीं।।१।।
अन्याय न कुछ कहना भी है ,
अन्याय सदा सहना भी है,
कुल-राष्ट्र-धर्म की सेवा में,
अन्याय न रत रहना भी है।
अन्यायी का हम काल बनें,
कुल-राष्ट्र-धर्म की ढाल बनें,
दुनिया सदियों तक याद करे,
हम ऐसी एक मिसाल बनें।
अब तो तलवारें खनक उठें,
उत्पाती को अब ठौर नहीं।
यह चुप रहने का दौर नहीं,
अब बहुत हुआ, अब और नहीं।।२।।
- राजेश मिश्र
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