हैं यहाँ कुछ बन्धु मेरे,
साथ चलना चाहता हूँ।
कवि नहीं हूं, मैं यहाँ बस,
बात करना चाहता हूँ।।
मैं उठाता शब्द-पुष्पों को धरा से,
पुनि पिरोता भाव की मृदु डोरियों में।
हार यदि फिर भी अपूरित रह गया तो,
तोड़ लेता हूं सुमन कुछ टहनियों से।
गूँथकर अर्पित पटल पर,
हार करना चाहता हूँ।
कवि नहीं हूं, मैं यहाँ बस,
बात करना चाहता हूँ।।
सुमन सुंदर हों, नहीं हों देखने में,
सुरभि सुंदर मनस् में उनके बसी है।
पुष्प का जीवन भले हो एक दिन का,
बाँटता पर्यंत जीवन वह हँसी है।
इस क्षितिज पर बस वही मैं,
पुष्प बनना चाहता हूँ।
कवि नहीं हूं, मैं यहाँ बस,
बात करना चाहता हूँ।।
मैं अपरिचित छंद-रस-आभूषणों से,
निधि है सुदामा-पोटली लघु काँख में।
दैन्यता अति मथ रही मेरे हृदय को,
अश्रु लज्जा से भरे हैं आौख में।
जो मिला इस समिति से प्रति-
दान करना चाहता हूँ।
कवि नहीं हूं, मैं यहाँ बस,
बात करना चाहता हूँ।।
- राजेश मिश्र
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