हाथ-पाँव वे काट चुके हैं,
सिर-धड़ की अब बारी है।
भारत माँ के शीलभंग की,
म्लेच्छों की तैयारी है।।
भाँति-भाँति की नस्लें उनकी,
तरह-तरह से वार करें।
कुछ सर तन से जुदा करें, कुछ
परिवर्तन की आड़ धरें।
वंचित जन को लक्ष्य बनाकर,
कृत्य कलुष यह जारी है।
भारत माँ के शीलभंग की,
म्लेच्छों की तैयारी है।।१।।
लव-जिहाद से बेटी हड़पें,
बोटी-बोटी कर डालें।
भू-जिहाद से खेती-बाड़ी,
घर-मंदिर-मठ हथिया लें।
थूक-मूत-चर्बी जिहाद से,
धर्म-भ्रष्टता भारी है।
भारत माँ के शीलभंग की,
म्लेच्छों की तैयारी है।।२।।
पहली नस्ल गरल विषधर-सी,
और दूसरी अजगर सी।
जैसे रक्षित हों संतानें,
अपनायें विधियाँ वैसी।
जीवन-मरण प्रश्न लघु छोड़ो,
मूल-नाश की बारी है।
भारत माँ के शीलभंग की,
म्लेच्छों की तैयारी है।।३।।
- राजेश मिश्र
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