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ईश्वर का वरदान है बेटी

जाति-धर्म मर्यादा खोटी, देश-राष्ट्र की सीमा छोटी,
हर घर का सम्मान है बेटी।
ईश्वर का वरदान है बेटी।।

कुल की लक्ष्मी, कुल की देवी,
वंश-बेलि की पोषक बेटी।
लघुतम हो या अति विशाल हो,
हर विपदा अवशोषक बेटी।

एक की बेटी कुल की बेटी, घर की बेटी गाँव की बेटी,
सबकी ही सन्तान है बेटी।
हर समाज की आन है बेटी।।१।।

बेटी बेटी, बहन भी बेटी, 
अनुज-वधू, सुत-वधू है बेटी।
माँ-पत्नी या दादी-नानी,
सब रूपों में बेटी-बेटी।

चाचा-मामा, दादा-नाना, सब सम्बन्धी सभी घराना,
भैया का प्रिय प्राण है बेटी।
और पिता का मान है बेटी।।२।।

बेटी दुर्गा, बेटी काली,
बेटी उमा, रमा अरु वाणी।
बेटी ही सीता-सावित्री,
बेटी ही झाँसी की रानी।

गंगा बेटी, यमुना बेटी, सरस्तीव-सरयू भी बेटी,
परम-पूज्य प्रतिमान है बेटी।
सृष्ट्याधार प्रधान है बेटी।।३।।

- राजेश मिश्र 

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