हे मोहन! मुरली वाले! हे भक्तों के रखवाले!
हे नाथ! कृपा कर दो।
हम प्यासे भटक रहे हैं,
जगती के मरुथल में।
पर मिले कहां से तृप्ति,
मृग-मरीचिका जल में।
हे भव-दुख हरने वाले! दे भक्ति-सुधा-रस प्याले,
अब तृप्त तृषा कर दो।
तुमसे ही तपन तपन की,
निशिपति भी शीतल हैं।
धरती का धैर्य तुम्हीं से,
तुमसे समीर-बल है।
हे सर्जक! पालनहारे! संहारक तुम्हीं मुरारे!
प्रभु पाप-ताप हर लो।
तुम निराकार निर्गुण हो,
अरु साकार-सगुण भी।
हो दृष्ट-अदृष्ट सभी तुम,
पूर्ण तुम्हीं, तुम कण भी।
हे सृष्टि-प्रलय के स्वामी! जगदीश्वर अन्तर्यामी!
निज चरण-शरण रख लो।
- राजेश मिश्र
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